एकांकी संचय

1.                                                    बहू की विदा          विनोद रस्तोगी

शब्द                                   अर्थ



सामर्थ्य –        क्षमता

धब्बा   -        बदनामी

अनुनय-विनय =   विनती 

आर्द्र स्वर –       करुण स्वर 

गिरे हाल में –     गरीबी की दशा में  

काग़ज़ के टुकड़े –  रुपये 

कुशल- क्षेम =     खैरियत 

नाक वाले –       इज़्जतदार 

यवनिका  -       पर्दा 


वाक्य बनाएँ :- 

भरसक :- एक मजदूर भरसक मेहनत करने के बावजूद भी अपने आभावों की पूर्ति नहीं कर पाते हैं।


व्यर्थ :- कर्मवीर कभी भी अपने समय को व्यर्थ नहीं गँवाना चाहते हैं।


मरहम :- समय बड़े बड़े घाव पर मरहम का काम करता है।


घाव :- किसी घायल के घाव पर प्रेम रूपी लेप लगाना परोपकार कहलाता है।


हतप्रभ :- अचानक माँ को अपनी कक्षा के सामने खड़ा देखकर मैं हतप्रभ हो गई।





१.उसे यह भी बताते जाना कि अगली बार मेरे लिए मरहम लेकर विदा कराने कब आओगे ?

(क) यहाँ ’उसे’ का प्रयोग किसके लिए हुआ है? प्रस्तुत पंक्ति के वक्ता और श्रोता कौन हैं ?

: यहाँ ’ उसे ’ का प्रयोग एकांकी की मुख्य पात्रा कमला के लिए हुआ है, जो एकांकी में बहू का किरदार निभा रही है। प्रस्तुत पंक्ति के वक्ता जीवनलाल जी हैं जो कमला के ससुर का किरदार निभा रहे हैं और श्रोता प्रमोद है जोकि, कमला के भाई का अभिनय कर रहे हैं।

(ख) ’मरहम’ शब्द का प्रयोग किसने किया और क्यों ? समझाकर लिखिए।

: ’ मरहम ’ शब्द का अर्थ होता है चोट पर लगाई जाने वाली दवाई रूपी लेप। परंतु प्रस्तुत पंक्ति में इसका प्रयोग जीवनलाल जी ने दहेज रूपी रुपये के संदर्भ में किया है। जीवनलाल जी का यह मानना था कि, उन्हें उनकी इच्छानुसार दहेज नहीं दिया गया , उनके बारातियों की भी खातिरदारी ठीक से नहीं की गई थी। इन सभी कारणों से उनके दिल को आघात पहुँचा था और वे उसी चोट की मरहम की माँग अपनी बहू कमला के भाई प्रमोद से कर रहे थे।

 

(ग) जीवनलाल ने कमला के संबंध में क्या निर्णय लिया और क्यों ?

:- जीवनलाल जी ने कमला के संबंध में यह निर्णय लिया कि जब तक कमला के मायके से दहेज के पाँच हज़ार रुपये उन्हें नहीं दी जाएगी तब तक कमला किसी भी उत्सव या पर्व पर अपने मायके नहीं जा पाएगी। उन्होंने ऐसा निर्णय लिया क्योंकि वे लोभी थे और दहेज में मिली रक़म से संतुष्ट नहीं थे।

 

(घ) इन शब्दों के आधार पर जीवनलाल के 
    चरित्र पर प्रकाश डालिए-

  (i) अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने वाला
     : जीवनलाल जी को अपनी दौलत पर
   काफ़ी घमंड था। यही कारण है कि जब 
   उनकी बहू की पहले सावन की विदाई के लिए
   उसका भाई प्रमोद आता है तो वे उसकी
   गरीबी का मज़ाक उड़ाते हुए कहते हैं कि
   झोपड़ी में रहने वालों को महलों के ख़्वाब
   नहीं देखने चाहिए।  
(ii) कठोर हृदय

         

             : जीवनलाल जी अत्यंत कठोर हृदय के थे। उन्होंने अपनी बहू कमला को पहले सावन पर अपने
मायके जाने की अनुमति केवल इसलिए नहीं दी क्योंकि उनके अनुसार उसके मायके वालों ने न तो शादी पर आए बारातियों की खातिरदारी ठीक से नहीं की थी और न ही उन्हें दहेज के पूरे पैसे ही दिए थे।





२. मुझे और लज्जित न करो ! ’ मेरी चोट का 
  इलाज बेटी के ससुराल वालों ने दूसरी चोट से 
  कर दिया है।

प्रश्न१: प्रस्तुत पंक्तियों के वक्ता और श्रोता कौन हैं? प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ लिखें।
: प्रस्तुत पंक्तियों के वक्ता एकांकी के मुख्य पात्र जीवनलाल जी हैं और श्रोता जीवनलाल जी की बहू कमला का भाई प्रमोद है। प्रस्तुत पंक्तियों को जीवनलाल जी ने पश्चाताप से भर कर प्रमोद से तब कहे थे जब उनका बेटा गौरी को घर लाने में नाकामयाब रहा और प्रमोद ने भी बिना कमला को लिए वापस जाने की इज़ाज़त यह कहते हुए माँगी कि , अगली बार वह उनके चोट के लिए मरहम ज़रूर लेकर आयेगा।

प्रश्न२: ’ मेरी चोट ’ से क्या आशय है ? उसने ऐसा क्यों कहा ?
: जीवनलाल के बेटे रमेश का विवाह प्रमोद की बहन कमला से हुआ था। रमेश के विवाह में पूरा दहेज न मिलने के कारण जीवनलाल जी को लड़की वालों पर बहुत गुस्सा आया था। उन्होंने प्रमोद से कहा कि रमेश की शादी में न बारातियों की खातिर ठीक से हुई और न हि उन्हें पूरा दहेज मिला था। जिस कारण से उनके मन में गहरा घाव हो गया है। इसी घाव को उन्होंने ’ ’ मेरी चोट ’ कहा है।  
प्रश्न३: जीवनलाल जी के मन में पश्चाताप का भाव कब पैदा हुआ और क्यों ?
: जब जीवनलाल जी की बेटी गौरी को उसके ससुरालवालों ने यह कह कर विदा नहीं किया कि , उन्हें दहेज पूरा नहीं मिला है तब जीवनलाल जी को अपनी गलती  का आभास हुआ और यह भी समझ में आ गया कि लड़की वाले क्यों न अपना सर्वस्व लड़केवालों को दे दें फिर भी वे कभी भी संतुष्ट नहीं होते हैं।उनके मन में पश्चाताप के भाव उनकी पत्नी राजेश्वरी जी ने पैदा किए थे । उन्होंने ही जीवनलाल जी को यह एहसास दिलाया था कि , वे भी किसी की बेटी के साथ ऐसा ही बर्ताव कर रहे थे जो मावोचित नहीं था।
प्रश्न४: इस अवतरण के आधार पर एकांकी के उद्‌देश्य को स्पष्ट करें ।
: इस एकांकी का मुख्य उद्‌देश्य समाज से दहेज प्रथा का समापन करना है। स्वच्छ भारत का सपना पूर्ण तभी होगा जब देश की सोच भी स्वच्छ होगी। जब समाज में बेटी और बहू को एक ही समान प्यार और आदर दिया जाएगा। जब हर लड़के वाले यह सोचेंगे कि, वे अपने घर एक बहू नहीं एक बेटी लाएँ हैं तो दहेज और इससे उत्पन्न होने वाली सारी समस्याएँ ही दूर हो जाएँगी।



२.        मातृभूमि का मान

    
                     " हरिकृष्ण ’ प्रेमी ’ "

    

  • हरिकृष्ण ’ प्रेमी ’ ( जन्म – १९०८, ग्वालियर, मध्यप्रदेश ; मृत्यु – १९७४ ई. ) का हिन्दी नाटककारों में विशिष्ट स्थान है।
  • मध्यकालीन इतिहास से कथा प्रसंगो को लेकर उन्होंने हमें राष्ट्रीय जागरण, धर्म निरपेक्षता तथा विश्व-बंधुत्व के महान संदेश दिये हैं।
  • उनके नाटकों में स्वच्छंदवादी शैली का बड़ा संयमित और अनुशासनपूर्ण उपयोग है, इसलिए उनके नाटक रंगमच की दृष्टि से सफल हैं।
  • इनका परिवार राष्ट्रभक्त था तथा इनमें बचपन से ही राष्ट्रीयता के संस्कार थे। दो वर्ष की अवस्था में माता की मृत्यु हो गयी थी। प्रेम की अतृप्त तृष्णा ने उन्हें स्वयं 'प्रेमी' बना दिया।


  • लाहौर से 'भारती' पत्रिका का प्रकाशन किया। सन 1946 में लाहौर में और उसके बाद बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में फिल्म-क्षेत्र में कार्य किया।

  • हरिकृष्ण ने उसके बाद आकाशवाणी जालंधर में हिंदी दिग्दर्शक रहे। बाद में बम्बई में फिल्म-क्षेत्र में कार्य करते रहे।

   रचनाएँ :

  • 'प्रेमी' जी की सर्वप्रथम प्रकाशित रचना 'स्वर्ण विहान'(1930 ई.) गीति-नाट्य है। पहला ऐतिहासिक नाटक 'रक्षा-बंधन' (1938 ई.) है। 'शिवा साधना'  'प्रतिशोध' 'आहुति'  'स्वप्नभंग', 'नवीन संज्ञा', 'शतरंज के खिलाड़ी' 'विषपान' 'उद्धार', 'भग्न प्राचीर', 'प्रकाशस्तम्भ', 'कीर्तिस्तम्भ', 'विदा' और सौंपों की सृष्टि 'शपथ' 'बंधन' और 'सवंत प्रवर्तन' आदि हैं। 'पाताल विजय' (1936 ई.) 'प्रेमी' जी का एकमात्र पौराणिक नाटक है।

  


  •  'मातृभूमि का मान'  ऐतिहासिक एकांकी हैं। 

    इनमें प्रेम के आर्दशवादी और विद्रोही स्वरूप

    को प्रस्तुत किया गया है

   शब्द                                       अर्थ 


विख्यात                   प्रसिद्‌ध


बंधुत्व                     भाईचारा


काव्यमय                  कविता से भरी

असंगठित                  बिखरी हुई

दंभ                       अहंकार

श्रीगणेश                   आरंभ

धमनियाँ                   नसें

खाल मोटी होना            बेशर्म होना
उपहासजनक               लज्जाजनक
ससैन्य                   सेना के साथ
धृष्टता                   अनुचित साहस
निरीक्षण                  देख-रेख
सिंहनाद                  युद्‌ध की ललकार
दुंदुभि                    नगाड़ा
स्वजन                   अपने लोग

पृथक                    अलग


वाक्य बनाएँ :-


 i) खाल मोटी होना - आज कल ये माना जाता है


   कि मोटी खालवाले व्यकित ही सुखी रहते हैं।

 ii निरीक्षण - प्रधानमंत्री के आगमन से पहले 
   शहर का निरीक्षण अच्छी तरह से कर लिया
   जाता है।
iii) उद्‌दंडता - उद्‍दंडता करने पर बच्चों को कड़े 

   अनुशासन में रखा जाता है।


iv) नमक का बदला चुकाना - हर भारतीय का 


   यह फ़र्ज़ होता है कि   वह अपनी मातृभूमि     के नमक का बदला चुकाने के लिए तत्पर

   रहे।


v) प्राण पखेरू उड़ जाना - जब मैं केवल पाँच 

   वर्ष की थी मेरी दादी  की बिमारी से प्राण       पखेरू उड़ गए थे।  

१. ताकत की बात न छेड़ो, अभयसिंह । प्रत्येक 


राजपूत को अपनी ताकत पर नाज़ है। इतने बड़े 

दंभ को मेवाड़ अपने प्राणों में आश्रय न दे , इसी 

में उसका कल्याण है। रह गई बात एक माला 

गूँथने की, सो वह माला तो बनी हुई है। हाँ, उस 

माला को तोड़ने का श्रीगणेश हो गया है।

(क) राव हेमू अभयसिंह से ऐसा क्यों कहते हैं ? 


    इस कथन के पीछे उनका क्या आशय है ?

: राव हेमू अभयसिंह से ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि अभयसिंह ने राव हेमू से यह कहा कि राजपूतों की छिन्न - भिन्न असंगठित शक्ति विदेशियों का सामना नहीं कर सकती , इस कारण जो छोटे-छोटे राज्य हैं वह अपनी शक्ति एक केंद्र के अधीन रखें। बूँदी राज्य भी मेवाढ़ के आश्रित रहा है। अतः बूँदी राज्य को भी विदेशियों का सामना करने के लिए मेवाढ़ की अधीनता स्वीकार लेनी चाहिए।



(ख) अभयसिंह कहाँ के सेनापति हैं ?वे क्या 


    संदेश लेकर आये हैं? 

: अभयसिंह मेवाढ़ के माहाराणा लाखा के सेनापति हैं। वे बूँदी के शासक राव हेमू जी के पास महाराणा लाखा का यह संदेश लेकर आए थे कि यदि राजपूतों को विदेशियों के आक्रमण का जवाब देना है तो उन्हें मेवाढ़ जैसे शक्तिशाली शासक के अधीन होना होगा।अभयसिंह जी के शब्दों में , आज राजपूतों को एक सूत्र में गूँथे जाने की बड़ी आवश्यकता है और जो व्यक्ति यह माला तैयार करने की ताकत रखता है, वह हैं मेवाढ़ के माहाराणा लाखा।



(ग) उपर्युक्त गद्‌यांश के आधार पर राव हेमू का


   चरित्र चित्रण कीजिए। ’ इतने बड़े दंभ को 

   मेवाड़ अपने प्राणों में आश्रय न दे ’ से उनका     क्या तात्पर्य है ?
: प्रस्तुत गद्‌यांश के आधार पर राव हेमू जी के चरित्र की इस विशेषताओं से हम अवगत होते हैं कि, राव हेमू जी अत्यन्त स्वाभिमानी , देशभक्त, कर्त्तव्यपरायण, निर्भीक एवं सच्चे राजपूत हैं। राजपूत जाति के प्रति उन्हें गर्व है। वे अपनी बूँदी को किसी भी प्रकार किसी के भी अधीन देखना नहीं चाहते। राव हेमू जी एक कुशल शासक और राजपूतों के गौरव के प्रतीक हैं। राव हेमू अपनी बूँदी की रक्षा के लिए सदा युद्‍ध के लिए तत्पर रहते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राव हेमू मानवता के गुणों से युक्त, देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत तथा जाति और वंश की मान - रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहने वाले वीर राजपूत योद्‌धा हैं। 


(घ) ’रह गई बात एक माला गूँथने की, सो वह माला बनी हुई है’ - यह किसने , किससे और किस संदर्भ में कहा है ?   

  
: ’ रह गई बात एक माला गूँथने की, सो वह

 माला बनी हुई है ’ - प्रस्तुत वाक्य बूँदी के 


शासक राव हेमू जी ने मेवाढ़ के सेनापति 


अभयसिंह जी से कही थी। यह वाक्य राव हेमू 


जी ने तब कहे जब अभयसिंह जी उन्हें मेवाढ़ की अधीनता स्वीकार करने के लाभ और उसकी आवश्यकता समझा रहे थे कि अब राजपूतों को आपसी वैर-भाव भुला कर एक सूत्र में माला की तरह गुँथना है। राव हेमू जी के उत्तर से यह स्पष्ट होता है कि, उनका मानना है कि सभी राजपूत एक सूत्र में ही बँधे हैं । वे विदेशियों से अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए एकजुट हो सकते हैं, परंतु अपनी स्वतंत्रता किसी को भी, किसी मूल्य पर बेच नहीं सकते हैं।


२. महाराणा - चारणी, क्यों पश्चाताप से विकल 


प्राणों को तुम और दुखी करती हो ? न जाने 


किस बुरी सायत में मैंने बूँदी को अपने अधीन करने का निश्चय लिया था। वीरसिंह की वीरता ने मेरे हृद्‍य के द्‍वार खोल दिए हैं, मेरी आँखों पर से पर्दा हटा दिया है। मैं देखता हूँ कि ऐसी वीर जाति को अधीन करने की अभिलाषा करना पागलपन है।


(क) माहाराणा क्यों दुखी थे ? किस कारण 


महाराणा ने बूँदी को अपने अधीन करने का 


निश्चय किया था ?

: महाराणा लाखा अत्यन्त दुखी थे क्योंकि, उन्होंने अपनी सेना के एक काबिल वीर योद्‌धा वीरसिंह को अपनी अबोधता और निराधार प्रतिज्ञा को पूर्ण करने की जुनून में खो दिया था।बँदी के महाराणा ने बूँदी को अपने अधीन करने का निश्चय किया  था क्योंकि नीमरा के मैदान में बूँदी के राव हेमू से पराजित होकर तथा अपने प्राणों की रक्षा के लिये उन्हें मैदान छोड़कर भागना पड़ा था। महाराणा लाखा अपने इसी अपमान का बदला लेना चाहते थे।
(ख) किसकी वीरता ने महाराणा के हृदय के द्‌वार खोल दिए तथा आँखों पर से पर्दा हटा दिया ? ’ हृदय के द्‍वार खोलना ’ तथा ’ आँखों से पर्दा हटाने ’ से क्या तात्पर्य है ?
: महाराणा लाखा की ही सेना का एक सैनिक जिसका, नाम वीरसिंह था की वीरता ने महाराणा लाखा के हृदय के द्‌वार खोल दिए थे तथा आँखों पर से पर्दा हटा दिया था। ’ हृदय के द्‌वार खोलना ’ से लेखक का तात्पर्य है सबको आदर देना, किसी को हीन समझ उसका तिरस्कार न करना।’ आँखों से पर्दा हटाने से तात्पर्य गलतफ़हमी दूर होना है। महाराणा लाखा भी बूँदी को अपने अधीन कर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्‌ध करना चाहते थे और वे यह भी मानते थे कि, सभी राजपूत, मेवाढ़ की छत्रछाया में ही आकर विदेशियों को हरा सकते हैं।

(ग) वीर जाति को अधीन करने की अभिलाषा को 


    पागलपन क्यों कहा गया है ?


:  वीर जाति को अधीन करने की अभिलाषा को पागलपन कहा गया है क्योंकि , जब समय की माँग थी कि सब अपनी-अपनी शक्तियों को एकजुट कर विदेशियों के खिलाफ़ खड़े हों,तब मात्र अपने अहंकार के कारण अपने ही स्वजनों का रक़्त बहाकर अपनी ही शक्ति को कम कर देना मूर्खता थी । महाराणा लाखा ने भी अपने अहंकार की पूर्ति के लिये ही अपनी सेना के कई वीर योद्‌धा की वीरता को व्यर्थ समाप्त कर दिया था।


(घ) ’ मातृभूमि का मान ’ एकांकी का मूल 


   उद्‌देश्य क्या है ? संक्षेप में लिखिए। 

: ’ मातृभूमि का मान ’ एकांकी  का मूल उद्‌देश्य पाठकों को यह बताना है कि, मातृभूमि का मान , उसकी इज़्जत सर्वोपरि होती है। उसकी इज़्जत के लिए कोई भी सौदा स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उसके मान की रक्षा के लिए यदि प्राणों की भी आहुति देनी पड़े तो हमेशा तैयार रहना चाहिए। मातृभूमि की मान-मर्यादा के लिए अपना तन-मन-धन हमेशा न्योछावर करने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमारे जीवन का यही उद्‌देश्य होना चाहिए-" पहले देश का मान,तब अपनी जान ।"                  



             सूखी डाली  “ उपेंद्रनाथ  अश्क

शब्दार्थ: -

तानाशाही –  निरंकुश शासन

कुटुम्ब   - परिवार

प्रभुत्व   - अधिकार

आच्छादित – छा जाना

पतोहू     - पोते की बहू

बरबस    - ज़बर्दस्ती

भृकुटि    - भौंह

पृथक    - अलग

लुप्त    - गायब

तनिक  - थोड़ा

परामर्श  - सलाह

पुलक   - प्रसन्न

ज्ञानार्जन – ज्ञान प्राप्त करना

पूर्ववत्‌  - पहले की तरह

वृथा  - बेकार

सयानी  - समझदार 

वयस  - उम्र

रुआँसी – रोने की हालत में

नीरवता – खामोशी 

क्लांत  - थका हुआ

खलल  - बाधा

दूरदर्शिता – दूर की सोचने वाला

अहाता  - आँगन   

वाक्य गठन करें : -
 १. तत्काल  : किसी भी राज्य में संप्रदायिक दंगे-
    फसाद बढ़ने पर तत्काल राष्ट्रपति शासन लागू
    कर दिया जाता है।
 २. दर्प : मनुष्य का दर्प ही उसे पतन की ओर ले
    जाता है।
 ३. कुटुम्ब : कुटुम्ब के सभी जन शरीर के 
    विभिन्न अंगों के समान एक-दूसरे से जुड़े
    रहते हैं।  
 ४. कोलाहल : दुनिया के कोलाहल में ही मनुष्य
    अक्‌सर अपने दिल की आवाज़ नहीं सुन 
    पाता है। 
 ५. काम आना : देश के प्रेमियों के लिए , देश के
    काम आना बड़े ही फ़र्क की बात होती है।

I.  “  वह तमीज़ तो बस आप लोगों को है । ” 
क) प्रस्तुत वाक्य किसने और किससे कहा है ?
   वक्ता का परिचय दीजिए ।
 : प्रस्तुत वाक्य उपेंद्रनाथ अश्क द्‌वारा रचित
   एकांकी ' सूखी डाली ' की छोटी बहू बेला ने
   कहा है। बेला एकांकी की प्रमुख पात्रा है जिसने
   अपने व्यवहार से पूरे परिवार में हल-चल पैदा
   कर दी थी। वह लाहौर के एक प्रतिष्ठित व
   सम्पन्न कुल की सुशिक्षित बेटी थी। बेला
   तुनकमिज़ा है,वह हाज़िरजवाब भी है। बेला में
   बचपना भरा हुआ है परंतु वह भावुक स्त्री       भी है तथा उसे अपनी गलती स्‍वीकारना 
ख) इंदु कौन है ?वक्ता से उसका क्या संबंध है ?

ग)  यह प्रसंग किस समय का है ?

घ)  प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की सार्थकता को
    सिद्‌ध करें।

II. “ पर क्या आप चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी
    वह डाल सूखकर मुरझा जाए ?
क) ऐसी कौन सी बात हो गई कि वक्ता रुँधे हुए
   कंठ से यह वाक्य कहती है ?

ख) प्रस्तुत वाक्य में पेड़ और डाल किसका प्रतीक
   है तथा उसके सूखने से क्या अभिप्राय है ?
ग) वक्ता और श्रोता का आपस में क्या सम्बंध 
   है ? वक्ता किस प्रकार श्रोता के हृदय में
   अपना स्थान बनाने में सफ़ल हुई ?
घ) प्रस्तुत एकांकी के उद्‌देश्य को स्पष्ट कीजिए ।

# आप संयुक्त और एकल परिवार में से किसके
  पक्षधर हैं ? कारण सहित बताएँ।


दीप दान   “ डॉ. रामकुमार वर्मा ”


परिचय :

* अपनी सर्वप्रथम एकांकी बादल की मृत्यु  
  १९३० में लिखी।

* एकांकीकार के रूप में साहित्य जगत में विशेष 
  ख्याति प्राप्त हुई।

* भारत सरकार ने इन्हें पद्‌मभूषण से 
  विभूषित किया।

* मध्य प्रदेश सरकार ने इन्हें देव पुरस्कार और
   ‘कालिदास पुरस्कार से भी सम्मानित किया।
 
* विशुद्‌ध साहित्यिक खड़ी बोली ही इनकी
  रचनाओं की भाषा रही है।

*मुख रचनाएँ : पृथ्वीराज की आँखें , रेशमी
  टाई , मयूर पंख , विभूति इत्यादि।

शब्दार्थ :

संरक्षण – रक्षा और देखभाल


अंतः पुर – भवन के अंदर का वह हिस्सा जहाँ 

         केवल स्त्रियाँ रहती हैं, रनिवास।


परिचारिका – सेविका ,


एक पार्श्व में – एक ओर


नेपथ्य – परदे के पीछे,


उद्यत – तैयार


अट्‌टहास – ज़ोर ज़ोर से हँसना


थिरकना – नाचना


नुपुर – घुँघरू


नाद – ध्वनि


मल्ल – कुश्ती


जौहर – स्त्रियों का अग्नि में जान दे देना,


धाय माँ – दाई माँ, पालने वाली माँ,


ब्यालू – शाम / रात्रि का भोजन


आखेट – शिकार


बाटड़ली – रास्ता


मेड़याँ – भवन


संरक्षक – अभिभावक


नराधम – अत्याचारी


चिरनिद्रा – मृत्यु


कंटक – बाधा


वाक्य गठन करें :-

१. मल्ल क्रिडा : दंगल फिल्म के द्‍वारा लोगों को 

  पहली बार पता चला कि मल्ल क्रिडा केवल 


  पुरुषों की ही नहीं होती है।


२. नुपुर नाद – स्वर्ग के राजा इंद्र की राज्य सभा 

   में अधिकतर नुपुर नाद ही सुनाई देती है।


३. उत्तराधिकारी – डलहौज़ी की लैप्स की नीति 

   के आधार पर कई भारतीय राजाओं को अपना     राज्य उत्तराधिकारी न होने के कारण खो देना

   पड़ता था।


४. अट्‍टहास – रावण के अट्‍टहास से संपूर्ण लंका 

   काँप उठती थी।


५. बाल बाँका न होना – चेतक ने अपने स्वामी 

  महाराणा प्रताप का युद्‌ध में बाल भी बाँका न


  होने दिया।  



१. पहाड़ बनने से क्या होगा ? राजमहल पर बोझ बनकर रह जाओगी, बोझ! और नदी बनो तो तुम्हारा बहता हुआ बोझ पत्थर भी अपने सिर पर धारण करेंगे, आनंद और मंगल तुम्हारे किनारे होंगे, जीवन का प्रवाह होगा, उमंगों की लहरें होंगी, जो उठने में गीत गाएँगी, गिरने में नाच नाचेंगी।

क)  यहाँ कौन किससे बात कर रहा है ?
  : प्रस्तुत पंतियाँ एकांकी की एक पात्रा सोना

    जो रावल सरूप
सिंह की बेटी है, अत्यंत रूपवत 
   और नटखट है, ने कुँवरउदय सिंह कधाय 

  माँ पन्ना को कहे हैं। यह बात  तब कह


  गई जब मयूर पक्ष कुंड में बनवीर ने


  नगरवासियों को दीप-दान
कर उत्सव मनाने

 घोषणा पर पन्ना ने सोना को ताना
दिया था। 


ख) तुम्हारा बहता हुआ बोझ पत्थर भी अपने सिर पर धारण
    करेंगे   से आप क्या समझते हैं ? वक्ता श्रोता से क्या करने
    को कह रही है ?
: यहाँ ' तुम्हारा बहता हुआ बो' से एकांकीकार  
धाय मा ी उदय सिंह के प्रति उनकी निष्ठा 

और उत्तर्दायित्व क
  ओर संकेत कर रहे हैं।

वक्ता श्रोता से


नगर में मनाए जाने


      वाले दीप-दान के उत्सव में शामिल होने को


 कहती है। वह


      धाय माँ का उदय सिंह को लेकर हर समय शंकित और

      चिंतित रहना व्यर्थ मानतहै।   
 
ग)  दीपदान कहाँ और क्यों हो रहा था ? उत्सव का वर्णन अपने शब्दों


में कीजिए।

:दीपदान चित्तौड़ नगर में बनवीर के कहने पर  

  
उसी के बनवाए हुए मयूर पक्ष कुंड में हो रहा था।


बनवीर ने स
  नगरवासियों को बूम-धाम 

से इसे मनाने को कहा था।
  उसके अनुसार दीप-


दान ऐसा लगना चाहिए जैसे संसार रूपी
सागर में  

आत्माएँ तैर रह हो, जैसे मेघ पानीपानी हो ग


हो
और बिजलियाँ टुकड़े-टुकड़े हो गई हो।   
 
घ)  दीपदान एकांकी के शीर्षक की सार्थकता

     पर प्रकाश डालिए।

         : किसी भी रचना का शीर्षक संक्षिप्त , उद्‌देश्यपूर्ण, कहानी के कलेवर को घेरे हुए एवं जिज्ञासापूर्ण होना चाहिए। इस दृष्टि से ' दीपदान ' शीर्षक पूर्णतः उपयुक्त है। इसमें एकांकी का समस्त
कथासार समाहित है। बनवीर अपने पथ को निष्कंटक बनाने के लिए मयूर-पक्ष नामक कुण्ड में दीपदान का आयोजन करवाता है।
पन्ना एक धाय माँ होकर भी चित्तौड़ के कुलदीपक की रक्षाहेतु अपने कुल का दीपदान कर देती है। अतः यह शीर्षक सार्थक व उपयुक्त है।

२. आज मैंने भी दीपदान किया है। दीपदान ! अपने जीवन का दीपमैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है। ऐसा दीपदान भी किसी ने किया है !
 
  क) ‘  आज मैंने भी दीपदान किया है कथन की वक्ता कौन है ? वह ऐसा क्यों कह रही है ?

    : 'आज मैने भी दी पदान किया है ’ प्रस्तुत 


थन की वकता
एकांकी प्रमुख पात्रा पन्ना 

अर्थात्‌  कुँवर उदय सिंह की 
धाय माँ कह रही हैं।

वह ऐसा इसलिए कह रही हैं क्योंकि
उन्होंने आज 

चित्तौड़ के कुलदीपक कुँवर उदय सिंह के

    
प्राणों की रक्षा के लिए अपने बेटे चंदन को 

बनवीर की रक़्त
ी प्यासी तलवार को भेंट कर 

दिया था। 
   
 
  ख)  प्रस्तुत एकांकी में दीपदान का उल्लेख किन-किन पात्रों ने
      कब किया ?
: प्रस्तुत एकांकी में दीपदान का उल्लेख
  
सर्वप्रथम सोना ने  पन्ना से किया जब वह कुँवर 

उदय सिंह को
अपना नाच

दिखाने आतहै और पन्ना को बनवीर द्‌वारा 
नगर में ीपदान के आयोजन के बारे में बताती 
 है। दूसरी बार  इसका उल्लेख  पन्ना स्वयं अपने

 से करती है ,जब    वह अपने पुत्र को कुँवर उदय 


 सिंह के बिछावन में मृत्यु  प्राप्त करने के लिए 


 सुला देती है। तीसरी बार इसका उल्लेख क्रूर 


 बनवीर द्‌वारा किया जाता है जब वह कुँवर

        
  उदय सिंह के कक्ष में उनकी हत्या करने
 आता है।       


  ग)एकांकी में वर्णित दीपदान उत्सव और पन्ना
    के दीपदान में क्या अंतर था ?

  : एकांकी में वर्णित दीपदान उत्सव और पन्ना के 


 दीपदान
  में यह अंतर था कि नगर में मनाए 

 जाने वाला दीपदान  नगरवासी मनोरंजन के लिए 


बनवीर के आदेश पर कर रहे थे, जबकि पन्ना के 


ीपदान के पीछे त्याग र चित्तौ
के प्रति 

उसकी निष्ठा और स्वामीभक्ति ी। नगर में 

        
मनाए जाने वाले उत्सव के पीछे बनवीर का घृणित
        
षड्‌यंत्र था जबकि, पन्ना के दीपदान के पीछे मेवा

के
उत्तराधिकारी के प्राणों की रक्षा का त्याग था।      
 
घ)अपने जीवन का दीपदान मैंने रक्त की धारा
   पर तैरा दिया है । इस कथन के आधार पर
   वक्ता का चरित्र – चित्रण कीजिए।  

  एकांकी की प्रधान नायिका पन्ना धाय माँ है। वह

       
महाराणा के छोटे पुत्र उदयसिंह की संरक्षिका है। 

उसमें
माँ की ममता, राजपूती का रक्त , 

राजभक्ति और
आत्मत्याग की भावना आदि 

अनेक विशेषताएदिखा
देती हैं। वह महाराणा

साँगा के कुल की पुरानऔर सच्च
  सेविका है। 

वह अपने अंदर किसी प्रकार का भी लालचीं 


है। वह अपने स्वामी के पुत्र की रक्षा के लिए 


अपने
पुत्र चन्दन क बलिदान देने में भी नहीं

हिचकती है। वह
कर्त्तव्यनिष्ठ है तथा एक दर्श 

भारतीय नारी है।
    


  संस्कार और भावना 
विष्णु प्रभाकर
Image result for विष्णु प्रभाकर
एकांकीकार " संस्कार और भावना "
परिचय ः

विष्णु प्रभाकर का जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था।
उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-    लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था।
उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था।
 घर की माली हालत ठीक नहीं थी , लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की।
विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही।
अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंदयशपालजैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।
विष्णु प्रभाकर ने पहला नाटक लिखा- हत्या के बाद थी ।
 आजादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर 1955 में आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक के तौर पर नियुक्त हो गये जहाँ उन्होंने 1957 तक काम किया।
 वर्ष 2005 में वे तब सुर्खियों में आए जब राष्ट्रपति भवन में कथित दुर्व्यवाहर के विरोध स्वरूप उन्होंने पद्म भूषण की उपाधि लौटाने की घोषणा की।
 उनका आरंभिक नाम विष्णु दयाल था। एक संपादक ने उन्हें प्रभाकर का उपनाम रखने की सलाह दी।
 विष्णु प्रभाकर ने अपनी लेखनी से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। 
 नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से वे शरत चन्द्र की जीवनी आवारा मसीहा लिखने के लिए प्रेरित  हुए ।

 भले ही उन्हें अ‌र्द्धनारीश्वर पर  साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला हो, किन्तु आवारा मसीहा ने साहित्य में उनका मुकाम अलग ही रखा।

विष्णु प्रभाकर ने अपनी वसीयत में अपने संपूर्ण अंगदान करने की इच्छा व्यक्त की थी। इसीलिए उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया, बल्कि उनके पार्थिव शरीर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया।
प्रमुख रचनाएँ ः
सत्ता के आर-पार, हत्या के बाद, नवप्रभात, डॉक्टर, प्रकाश और परछाइयाँ, बारह एकांकी, अब और नही, टूट्ते परिवेश, गान्धार की भिक्षुणी, और अशोक आदि।
संस्कार और भावना में विष्णु प्रभाकर जी ने मानवीय भावनाओं के बीच के द्वंद्व को बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। वे इस एकांकी के माध्यम से यह सन्देश देते हैं कि लोग पारंपरिक रुढ़िवादी संस्कारों की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते है। इसके कारण वे अपने निकट संबंधियों से भी रिश्ता तोड़ देते हैं। पर इसका दुःख हमेशा हमें कष्ट देता है। दुःख के समय जब कोई सहायता करता है तब ये रुढ़ग्रस्त प्राचीन संस्कार दुर्बल हो जाते हैं। मानवीय भावना प्रबल हो जाती है। जैसे एकांकी में जब माँ को अपने बेटे की जानलेवा बीमारी और उनकी बंगाली बहु द्वारा की गई सेवा की सूचना मिलती है उनका पुत्र प्रेम प्रबल हो जाता है और वे अपने बहु बेटे को अपनाने का निश्चय करतीं हैं।
शीर्षक की सार्थकता –
संस्कार और भावना  इस कहानी का शीर्षक एकदम सटीक तथा सार्थक है।पूर्ण एकांकी में संस्कारों तथा भावनाओं के मध्य द्वंद्व दर्शाया गया है।एकांकी में परम्परागत संस्कार और मानवीय भावनाओं के बीच के द्‌वंद्‌व को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। एकांकीकार ने प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से मानव मन का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। एक भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार की माँ अपने पुराने संस्कारों से बद्‌ध है। यह परिवार परम्पराओं से चली आ रही रूढ़िवादी संस्कारों को ढो रही है और उसकी रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझ रही है। इसी कारण माँ अपने बड़े बेटे अविनाश के अंतर्जातीय विवाह को स्वीकार नहीं करती है। अविनाश ने एक बंगाली लड़की से प्रेम-विवाह किया और अपनी पत्नी के साथ घर से अलग रहने लगा है। माँ अपने छोटे बेटे अतुल और उसकी पत्नी उमा के साथ रहती है पर बड़े बेटे से अलग रहना उसके मन को कष्ट पहुँचाता है।
जब माँ को अविनाश की बीमारी, उसकी पत्नी द्‌वारा की गई सेवा और उसकी जानलेवा बीमारी की सूचना मिलती है तब पुत्र-प्रेम की मानवीय भावना का प्रबल प्रवाह रूढ़िग्रस्त प्राचीन संस्कारों के जर्जर होते बाँध को तोड़ देता है। माँ अपने बेटे और बहू को अपनाने का निश्चय करती है।एकांकीकार ने रूढ़िग्रस्त प्राचीन संस्कारों पर ममता,स्नेह जैसी भावना की विजय दिखलाई है। इसीलिए मेरे विचार से यह शीर्षक उचित है।
एकांकी का उद्देश्य –
इस एकांकी का उद्देश्य रूढ़िग्रस्त प्राचीन संस्कारों पर आधुनिक विचारों की विजय दर्शाना है । इस एकांकी द्वारा हमें यह सन्देश प्राप्त होता है कि व्यक्ति के मन में उत्पन्न होनेवाली मानवीय भावनाओं के सम्मुख संस्कारों और रूढ़ियों का टिके रहना अत्यंत कठिन है । ऐसे में व्यक्ति का मन संस्कारों और रूढ़ियों  दासता से मुक्त होकर निर्मल और कोमल रूप धारण कर लेता है । इस एकांकी का उद्देश्य रहा है कि नयी तथा पुरानी पीढ़ी के विचारों में विभिन्नता तथा संघर्ष दर्शाया जाय।अंत में माँ की ममता प्राचीन रीति रिवाजों तथा परम्पराओं पर विजय प्राप्त करती है।व्यक्ति के जीवन में ममता,स्नेह तथा प्रेम सर्वोपरि है।यही एक सुखी परिवार की नींव है।एकांकीकार अपने उद्देश्य में शत-प्रतिशत सफल रहे हैं।

कठिन शब्दार्थ

शब्द                                  अर्थ      
संक्रान्ति काल  -     एक अवस्था से निकलकर दूसरी अवस्था में
                           पहुँचने का ।
दिवा               -    दिन
निर्मम             -    कठोर हृदय
परितोष          -    संतोष
आतुर            -    व्याकुल

मिसरानी          -      ब्राह्‌मण स्त्री जो आजीविका के लिए दूसरों के लिए
                          खाना पकाती है
रक्तिम आभा  -      लाल चमक
बहुतेरा              -     बहुत अधिक
हैजा                  -      एक रोग का नाम
विद्रूप                -      व्यंग्य
कपोलों पर     -      गालों पर
साक्षी           -       गवाह
पचड़े               -      बेकार की बातें
मोहिनी सी छाह जाती है  जैसे मन को मोह लेना
डाकिन         -       चुड़ैल
सौम्यता        -      शीतलता
विजातीय      -    दूसरी जाति की
फौलाद         -   असली लोहा, मज़बूत शरीर वाला 


वाक्य   गठन:

१. मरणासन्‍न - बाढ़ के कारण मुर्शिदाबाद के लोग मरणासन्‍न हैं।
२. फ़ौलाद     भारतीय सैनिक फ़ौलाद का हृदय रखते हैं।
३. उद्विग्‍न      - विपरीत परिस्थिति में भी हमें उद्विग्‍न नहीं होना

                      चाहिए।
          
१.बड़ी-बड़ी काली आँखें, उनमें शैशव की भोली मुसकराहट, अनजान में ही लज्जा हुए कपोलों पर रहने वाली हँसी…

(i) इन शब्दों में किससे द्‌वारा, किसके रूप की प्रशंसा, किन शब्दों में
    की गई है ? उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।

    (i) इन शब्दों में उमा के द्‌वारा अविनाश की पत्नी की प्रशंसा की 
       गई है। उमा अपनी सास से कहती है कि अविनाश की पत्नी बहुत
     भोली और प्यारी है, जो उसे एक बार देख ले तो उसका मन बार-
     बार उसे देखने के लिए मचल उठेगा। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी और
    काली हैं जिनमें अबोध बच्चे का भोलापन छिपा है। उसके गाल पर
    सदैव लज्जा की लालिमा का आवरण रहता है।

(ii) इन शब्दों को सुनकर माँ क्यों चौंक पड़ी ? उनके मन में कौन सा 
      प्रश्न उठा ?
      
    (ii) उमा ने जब अविनाश की पत्नी की विशेषताओं का उल्लेख
         किया तो माँ (उमा की सास) चौंक पड़ी क्योंकि उसे इस बात का
         आभास नहीं था कि उमा अविनाश की पत्नी से मिली है क्योंकि
        अविनाश अपनी पत्नी के साथ अलग रहता था। माँ के प्रश्न में यह
        प्रश्न उठा कि उमा कब अविनाश की पत्नी से मिली। उन्होंने उमा
        से प्रश्न किया – “तूने क्या अविनाश की बहू को देखा है ?”

(iii) क्या उमा ने अविनाश की बहू को देखा था ? यदि हाँ, तो वह 
       उसके घर कब गई थी और क्यों ?
       
    (iii) हाँ, उमा ने अविनाश की पत्नी को देखा था। एक दिन जब माँ 
         अविनाश की पत्नी से बहुत गुस्सा होकर दुखी हो रही थी तब 
         उमा माँ कोबिना बताए अविनाश की पत्नी से मिलने उसके घर
        चली गई थी। दरअसल उमा लड़ने गई थी क्योंकि उनकी वजह
        से अविनाश ने अपनी माँ से अलग होने का फैसला लिया था 
        जिसके कारण माँ को बहुत दुख हुआ था और वह अपने बड़े बेटे
        से मिलने के लिए तड़पती रहती हैं।

(iv) माँ ने अविनाश की बहू को क्यों नहीं अपनाया ? समझाकर
       लिखिए।
     (iv) माँ एक हिन्दू वृद्‌धा है जो जाति-पाँति, ऊँच-नीच और
           छुआछूत में विश्वास रखती हैं। वे हिन्दू समाज की रूढ़िवादी
           संस्कारों से ग्रस्त हैं। वे संस्कारों की दास हैं। उसके दो पुत्र हैं
          -बड़ा अविनाश और छोटा अतुल। अविनाश ने माँ की इच्छा के
         विरुद्‌ध जाकर एक बंगाली लड़की से प्रेम-विवाह कर लिया
         परन्तु माँ ने इस विवाह को अपनी स्वीकृति प्रदान नहीं की और
         विजातीय बहू को अपनाया भी नहीं। इसका परिणाम यह हुआ
         कि अविनाश अपनी पत्नी के साथ अलग रहने लगा। माँ इस
         बात से अत्यंत आहत थी।

2. अभी चलो माँ, पर चलने से पहले एक बात सोच लो। यदि तुम उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं ला सकीं तो जाने से कुछ लाभ नहीं होगा।

(i) “अभी चलो माँ” – इस वाक्यांश को किसने, किससे और किस
      अवसर पर कहा ?

   (i) उपर्युक्त वाक्यांश अतुल ने अपनी माँ को उस अवसर पर कहा
      जब माँ को मिसरानी से पता चला कि अविनाश तो हैजा से बच
      गया लेकिन अब वहीं बीमारी अविनाश की पत्नी को हो गया 
     है और वह मरणासन्न है तब माँ अतुल से कहती है वह उसे 
    अविनाश के पास ले चले।
  
  (ii) अतुल का चरित्र-चित्रण कीजिए। 

      (ii) अतुल एकांकी का प्रमुख पुरुष पात्र है। वह माँ का छोटा
         बेटा, अविनाश का अनुज और उमा का पति है। वह प्राचीन 
         संस्कारों को मानते हुए आधुनिकता में यकीन रखने वाला एक            प्रगतिशील नवयुवक है। वह माँ का आज्ञाकारी पुत्र होते हुए भी           माँ की गलत बातों का विरोध भी करता है। जब माँ अविनाश की         पत्नी बीमार पड़ जाती है तब माँ अपने बड़े लड़के के घर जाना             चाहती है। उस वक्त अतुल स्पष्ट शब्दों में माँ से कहता है –                  “यदि तुम उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं 
      ला सकीं तो जाने से कुछ लाभ नहीं होगा।” अतुल संयुक्त परिवार
      में विश्वास रखता है। उसमें भ्रातृत्व की भावना है। वह अपने बड़े
     भाई का सम्मान करता है।

(iii) अतुल और उमा माँ के किस निर्णय से प्रसन्न हैं ? उनकी माँ के
        विचारों में परिवर्तन का क्या कारण था ? समझाकर लिखिए।

   (iii) जब माँ को अविनाश की पत्नी की बीमारी की सूचना मिलती है
        तब उसका हृदय मातृत्व की भावना से भर उठता है। उसे इस
       बात का आभास है कि यदि बहू को कुछ हो गया तो अविनाश 
      नहीं बचेगा। माँ को पता है कि अविनाश को बचाने की शक्ति
     केवल उसी में है। इसलिए वह प्राचीन संस्कारों के बाँध को 
     तोडकर अपने बेटे के पास जाना चाहती है। अतुल माँ से कहता है
     कि इस स्थिति में उन्हें अपनी विजातीय बहू को भी अपनाना 
    पड़ेगा, माँ कहती है – ” जानती हूँ अतुल। इसलिए तो जा रही
     हूँ।” यह सुनकर अतुल और उमा प्रसन्न हो जाते हैं।

(iv) अंतर्जातीय विवाह का देश की एकता और अखंडता में क्या
       महत्त्व है ? संक्षेप में अपने विचार लिखिए।

   (iv) भारतवर्ष में अंतर्जातीय विवाह का चलन कोई नई बात नहीं है।
          सम्राट अकबर से लेकर इंदिरा गांधी तक, सुनील दत्त से
         लेकर शाहरुख खान तक देश में हज़ारों ऐसे उदाहरण देखे जा
       सकते हैं जहां विभिन्न समुदाय के लोग परस्पर विवाह के बंधन में
      बँधे हैं। भारत में विभिन्न धर्म और जाति के लोग रहते हैं। उन सभी
      के धार्मिक रीति-रिवाज़, रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार
     भिन्न हैं। यदि इन विभिन्न धर्म और जाति के लोगों के बीच वैवाहिक
     संबंध स्थापित हों तो उनकी सभ्यता और संस्कृति का मेलजोल बढ़
     पाएगा जिससे देश की एकता और अखंडता मजबूत होगी।

3 comments: