काकीसियारामशरण गुप्त | ||||||||
लेखक परिचय:
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कुहराम - रोना-धोना
भूमि-शयन – भूमि पर सोना
विलाप - दुखी होकर रोना
आवरण - परदा
अनंतर - उसके बाद
अगोचर - अदृश्य
अनंतर - उसके बाद
अगोचर - अदृश्य
आद्रर्ता - नमी
अन्तस्तल – हृदय
शून्य मन – खाली मन
अन्यमनस्क – किसी और सोच में
अन्तस्तल – हृदय
शून्य मन – खाली मन
अन्यमनस्क – किसी और सोच में
उत्कण्ठित - उल्लास
खूँटी - कपड़े टाँगने के लिए दीवार में लगी हुक
समवयस्क - हमउम्र
चवन्नी - पच्चीस पैसे
सुझाई - समझाना
प्रफुल्ल - खुश
प्रफुल्ल - खुश
मुखबिर - खबरी
हतबुद्धि - कुछ सोचने की अवस्था में न होना
१. श्यामू गंभीर हो गया। मतलब यह कि बात लाख रुपये कही सुझाई गई है, परंतु कठिनता यह थी कि मोटी रस्सी कैसे मँगाई जा पास में दाम है नहीं और घर के जो आदमी उसकी काकी को बिना दया-माया के जला आए हैं, वे उसे इस काम के लिए कुछ नहीं देंगे। उस दिन श्याम को चिन्ता के मारे बड़ी रात तक नींद नहीं आई।
(क) श्यामू कौन था और वह किस बात से गंभीर हो गया था ? :- श्यामू विश्वेश्वर और उमा का बेटा था। जब भोला ने बताया कि पतंग की डोर पतली है जिसे पकड़कर यदि काकी राम के घ्रर से उतरती है तो डोरी टूट जाएगी।अतःउसे मोटी रस्सी लानी होगी। (ख) श्यामू ने इस गंभीर समस्या का क्या हल निकाला और क्यों ?
:- श्यामू ने इस गंभीर समस्या का हल चोरी के माध्यम से निकाला। उसने अपने पिता विश्वेश्वर की कोट से एक रुपए की चोरी की थी क्योंकि उसका मानना था कि घर के लोग उसे मोटी रस्सी लाने के पैसे नहीं देंगे क्योंकि उन्होंने ही बिना दया-माया के उसकी काकी को जला दिया था।
(ग) काकी कौन थी ? श्यामू से उसका क्या संबंध था ? काकी के साथ क्या दुर्घटना घटी थी ?
:- काकी, विश्वेश्वर की पत्नी और श्यामू की माँ थी। श्यामू उसका बेटा था जो, उसके बहुत करीब था।काकी की अचानक मृत्यु हो जाती है। श्यामू अपनी माँ की कमी को बहुत महसूस करता है और प्रायः अकेला बैठा-बैठा शून्य मन से आकाश की ओर
ताका करता था।
(घ) काकी कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए इसके शीर्षक की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए।
:- काकी कहानी के माध्यम से लेखक ने एक अबोध तथा मासूम बालक की मातृ-वियोग की पीड़ा को व्यक्त किया है। इस कहानी के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि बालकों का हृदय अत्यंत कोमल, भावुक तथा संवेदनशील होता है। वे मातृवियोग की पीड़ा को सहन नहीं कर पाते हैं। ’ काकी ’ कहानी एक घटना प्रधान कहानी है। शीर्षक को हमेशा मौलिक और जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला होना चाहिए। काकी कहानी इस दृष्टि से उचित है। काकी कहानी का प्रारंभ काकी की मृत्यु वाली दुर्घटना से शुरू होती है। भले ही काकी प्रत्यक्ष रूप से कहानी में न हो परंतु परोक्ष रूप कहानी के अंत तक काकी विद्यमान थीं। अतः कहानी का शीर्षक एकदम सटीक है।
सूर के पद
* सूरदास कॄष्ण भक्ति काव्य के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।
* सूरदास जी वात्सल्य और श्रृंगार के अन्यतम कवि हैं।
* इनके काव्य में बाल-कृष्ण के सौंदर्य, चपल चेष्टाओं और क्रीडाओं
की मनोहर झाँकी मिलती है।
* संयोग श्रृंगार की अपेक्षा इनके काव्य में वियोग श्रंगार का अधिक
विशद और मार्मिक चित्रण हुआ है।
* इनके काव्य की भाषा सरल और मधुर ब्रजभाषा है।
* सबसे प्रमुख एवं प्रसिद्ध काव्य भ्रमरगीत है।
शब्दार्थ
हलरावै - हिलाती हैं
मल्हावै - पुचकारती हैं
निंदरिया - नींद
बेगहिं - जल्दी से
अधर - होठ
मौन - चुप
सैन - संकेत, इशारा
खिजत जात -- चिड़चिड़ाते हुए
अरुण लोचन –- लाल नेत्र
जम्हात – जम्हाई लेना
धूल-धूसर गात – धूल में सना शरीर
अलक - बाल
तुतरे बोल बोलत – तुतलाकर बोलते हैं
निमिख – पल, क्षण में
धौरी – सफ़ेद (गाय)
पय – दूध
माल – माला
बेनी – चोटी
झुंगली -- वस्त्र, कपड़ा
सुत – बेटा
उर – हृदय, छाती
ब्याहन – विवाह, शादी
दाऊहिं – बलराम
मंगल – शुभ / मंगल गीत
गैहौं – गाएँगे
१. “मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहे नहिं बेगहिं आवै, तोको कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख ‘सुर’ अमर मुनि दुरलभ, सो नंद भामिनी पावै॥”
पंक्तियों पर आधारित प्रश्न :
क) कौन, किसके लिए, किसे बुला रहा है ? उसे बुलाते हुए क्या कहा जा रहा है ?
_ यशोदा मैया, अपने लाल कृष्ण के लिए निंदिया को बुला रही है।
उसे बुलाते हुए वह निंदिया को पूछती हैं कि वह क्यों नहीं
उसके लाल के पास जल्दी आ रही है, उसका लाल सोना चाहता है पर, चूँकि वह नहीं आ रही है, वह सो नहीं पा रहा है।
ख) बालक की किन हरकतों से पता चलता है कि वह सोया नहीं
है ? माँ उसे कैसे सुलाती है ?
_ बालक सोना चाहता है पर सो नहीं पा रहा है, इसीलिए वह
बहुत बेचैन है। अपनी इसी बेचैनी के कारण कभी वह अपनी
पलकें ज़ोर से बंद कर लेता है, तो कभी उसके होंठ फड़फड़ाते हैं। वह कभी-कभी तो अचानक उठाकर बैठ जाता है।
ग) यशोदा इशारों मे क्यों बातें करती है ?
_ यशोदा मैया इशारों में बातें करती हैं क्योंकि, अपने लाल को बड़ी कठिनाई से उन्होंने सुलाया था और वे नहीं चाहती थी कि उनके लाल की निद्रा भंग हो और वह बेचैन हो जाए। कृष्ण के पास निंदिया जल्दी से नहीं आई थी और यशोदा मैया नहीं चाहती थीं कि वह जल्दी टूट जाए।
घ) रेखांकित पंक्ति का अर्थ अपने शब्दों मे लिखिए।
_ रेखांकित पंक्ति में सूरदास जी ने कृष्ण के बालक्रीड़ा का वर्णन किया है। माना जाता है कि अपने आराध्य देव कृष्ण के बाल रूप का वर्णन करने में सूरदास जी अतुलनीय हैं। उनके काव्य में किए वात्सल्य वर्णन को पढ़कर ही पाठकों को उनके जन्मांध होने पर संदेह होता है। प्रस्तुत रेखांकित पंक्ति में सूरदास जी कहते हैं कि, कृष्ण को सुलाने और उन्हें सोता देख आनंदित होने का सुख देवताओं और सिद्ध मुनियों को भी दुर्लभ होता है। परंतु नंद की पत्नी यशोदा मैया को यह सुख अनायास मिलता है।
२. खीजत जात माखन खात।
अरुण लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार ज्म्हात॥
कबहूँ रुनझुन चलत घुटुरन, धूर धूसर गात।
कबहूँ झुक कें अलक खेंचत, नैन जल भर लात॥
कबहूँ तुतरे बोल बोलत, कबहूँ बोलत तात।
’ सूर ’ हरि की निरिख शोभा, निमिख तजत न मात॥
: प्रस्तुत पंक्तियों में यशोदा भगवान कृष्ण को माखन खिला रही हैं। कृष्ण जी चिढ़ते हुए और मचलते हुए माखन खा रहे हैं क्योंकि उन्हें नींद आ रही थी। नींद के कारण उनकी आँखें लाल और भौंहें टेढ़ी हो रही थीं। वे बार-बार जम्हाई ले रहे थे। कभी वह घुटनों के बल चलते हैं और उनके पैरों की पैंजनी के घँघरू झन-झन करते हुए बजने लगते हैं। पूरा शरीर धूल में सना हुआ है। कभी वे झुककर गुस्से से अपने ही बाल खींचने लगते हैं, जिससे उनकी आँखों में पानी भर आता है। कभी वे चिढ़कर अपनी तोतली भाषा में कुछ बोलते हैं तो कभी माता यशोदा से छुटकारा पाने के लिए अपने पिता को बुलाते हैं। सूरदास जी कहते हैं कि माता यशोदा श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से मुग्ध हो जाती हैं और एक क्षण के लिए भी कृष्ण से अलग नहीं होना चाहती हैं।
२. खीजत जात माखन खात।
अरुण लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार ज्म्हात॥
कबहूँ रुनझुन चलत घुटुरन, धूर धूसर गात।
कबहूँ झुक कें अलक खेंचत, नैन जल भर लात॥
कबहूँ तुतरे बोल बोलत, कबहूँ बोलत तात।
’ सूर ’ हरि की निरिख शोभा, निमिख तजत न मात॥
: प्रस्तुत पंक्तियों में यशोदा भगवान कृष्ण को माखन खिला रही हैं। कृष्ण जी चिढ़ते हुए और मचलते हुए माखन खा रहे हैं क्योंकि उन्हें नींद आ रही थी। नींद के कारण उनकी आँखें लाल और भौंहें टेढ़ी हो रही थीं। वे बार-बार जम्हाई ले रहे थे। कभी वह घुटनों के बल चलते हैं और उनके पैरों की पैंजनी के घँघरू झन-झन करते हुए बजने लगते हैं। पूरा शरीर धूल में सना हुआ है। कभी वे झुककर गुस्से से अपने ही बाल खींचने लगते हैं, जिससे उनकी आँखों में पानी भर आता है। कभी वे चिढ़कर अपनी तोतली भाषा में कुछ बोलते हैं तो कभी माता यशोदा से छुटकारा पाने के लिए अपने पिता को बुलाते हैं। सूरदास जी कहते हैं कि माता यशोदा श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से मुग्ध हो जाती हैं और एक क्षण के लिए भी कृष्ण से अलग नहीं होना चाहती हैं।
३. “मैया मेरी, चंद्र खिलौना लैहों॥
धौरी को पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुथैहौं।
मोतिन माल न धरिहौं उर पर, झुंगली कंठ न लैहौं॥
जैहौं लोट अबहिं धरनी पर, तेरी गोद न ऐहौं।
लाल कहैहौं नंद बबा को, तेरो सुत न कहैहौं॥
कान लाय कछु कहत जसोदा, दाउहिं नाहिं सुनैहौं।
चंदा हूँ ते अति सुंदर तोहि, नवल दुलहिया ब्यैहौं॥
तेरी सौं मेरी सुन मैया, अबहीं ब्याहन जैहौं।
‘सूरदास’ सब सखा बराती, नूतन मंगल गैहौं॥’’
-- प्रस्तुत पद में बालक कृष्ण के रूठने, नखरे करने और माँ द्वारा
उन्हें मनाए जाने का मनोहारी चित्र खींचा गया है। चंद्रमा को
खिलौने के रूप में पाने के लिए कृष्ण मचल गए हैं। वे कहते हैं कि
अगर उन्हें चाँद न मिला तो वे सफ़ेद गाय का दूध न पीएँगे और
अपनी चोटी भी नहीं बँधवाएँगे। यही नहीं, वे यह भी कहते हैं कि न
मोतियों की माला गले में डालेंगे और न वस्त्र पहनेंगे, माँ की गोद में
नहीं आएँगे और धूल में लोटेंगे। यशोदा को धमकाते हुए उनका यह
भी कहना हैं कि अब से वे माँ के नही, बल्कि नंद बाबा के पुत्र
कहलाएँगे।
ऐसी प्यारी-प्यारी बातें सुनकर यशोदा उन्हें मनाते हुए कान में
कहती हैं कि वे कृष्ण के लिए चाँद से भी सुंदर दुल्हनिया लाएँगी,
और यह बात बलराम को पता न चले। अपने विवाह की बात
सुनकर कृष्ण की खुशी का ठिकाना न रहा। वे माँ को सौगंध देकर
कहते हैं कि जल्दी से उनकी शादी करा दी जाए।
सूरदास कहते हैं कि कृष्ण के ब्याह में उनके इष्ट-मित्र बाराती के
रूप में जाएँगे और सारे मिलकर मंगल गीत गाएँगे।
क) कृष्ण माँ से किस बात का हठ कर रहे हैं ?
-- कृष्ण को चाँद सुंदर लगता है और वे उसे खिलौने के रूप
में पाना चाहते हैं। इसी बात की ज़िद वे माँ से करते हैं।
-- कृष्ण को चाँद सुंदर लगता है और वे उसे खिलौने के रूप
में पाना चाहते हैं। इसी बात की ज़िद वे माँ से करते हैं।
ख) अपनी माँग पूरी कराने के लिए वे क्या कहते हैं ?
-- कृष्ण माँ को धमकाते हुए कहते हैं कि अगर उन्हें चाँद नहीं
दिया गया तो वे न गाय का दूध पीएँगे और न ही चोटी
गुँथवाएँगे, मोती की माला और कपड़े नहीं पहनेंगे। वे धरती पर
लोटने की बात कहते हैं, और यह भी कि वे नंद के बेटे
कहलाएँगे, यशोदा के नहीं।
-- कृष्ण माँ को धमकाते हुए कहते हैं कि अगर उन्हें चाँद नहीं
दिया गया तो वे न गाय का दूध पीएँगे और न ही चोटी
गुँथवाएँगे, मोती की माला और कपड़े नहीं पहनेंगे। वे धरती पर
लोटने की बात कहते हैं, और यह भी कि वे नंद के बेटे
कहलाएँगे, यशोदा के नहीं।
ग) माँ क्या कहकर उन्हें मनाती हैं ?
-- माँ कृष्ण के कान में यह कहती हैं कि उसका विवाह वे चाँद से
भी सुंदर दुल्हन से कराएँगी, और वह यह बात बलराम को न
बताए। इस तरह कृष्ण को मनाया जाता है।
-- माँ कृष्ण के कान में यह कहती हैं कि उसका विवाह वे चाँद से
भी सुंदर दुल्हन से कराएँगी, और वह यह बात बलराम को न
बताए। इस तरह कृष्ण को मनाया जाता है।
ग) मान जाने पर कृष्ण क्या कहते हैं ? मंगल गीत कौन गाएँगे ?
-- मान जाने पर कृष्ण बहुत खुश होते हैं और माँ को सौगंध
दिलाकर कहते हैं कि उन्हें तुरंत ही ब्याह करना है। कृष्ण के
सारे सखा-मित्र बराती बनकर जाएँगे और मंगल गीत गाएँगे।
-- मान जाने पर कृष्ण बहुत खुश होते हैं और माँ को सौगंध
दिलाकर कहते हैं कि उन्हें तुरंत ही ब्याह करना है। कृष्ण के
सारे सखा-मित्र बराती बनकर जाएँगे और मंगल गीत गाएँगे।
साखी
शब्दों के सही अर्थ पर निशान लगाएँ : कबीरदास
दोऊ – दोनोंं
बलिहारी – न्यौछावर
हरि – ईश्वर
समाहि – समाना
जोरि – जोड़कर
मुल्ला – मौलवी
बाँग दे – आवाज़ देना
खुदाए – ख़ुदा के बंदे
पाहन – पत्थर
चाकी – चक्की
मसि – स्याही
लेखनि – कलम
बनराय – जंगल(पेड़-पौधे)
कागद – कागज
पक्तियों पर आधारित प्रश्न :
१. “जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि॥
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाए॥”
क) प्रेम-गली की क्या विशेषता है ? क्या आप उससे सहमत हैं ?
प्रेम गली की यह विशेषता है कि यह बहुत ही संकरी होती है,
जिसमें दो एक साथ नहीं समा सकते। जिसे भी प्रेम के मार्ग पर
चलना होता है, उसे अहंकार का त्याग करना होता है क्योंकि
प्रेम सर्वस्व समर्पण की भावना को माँगता है और अहंकार
मनुष्य को सर्वस्व समर्पण करने नहीं देता है।
ख)‘मैं’ और ‘हरि’ के उदाहरण से कबीर आपको क्या समझाना
चाहते हैं ?
' मैं ’ और ' हरि ’ के उदाहरण से कबीरदास जी हमें यह
समझाना चाहते हैं कि अहंकार को बिना त्यागे ईश्वर की प्राप्ति
असंभव है। भक्त शक्ति से नहीं वरन् प्रेमपूर्ण भक्ति से ही
अपने ईष्ट का प्रिय बन सकता है। उदाहरण के लिए रावण
शिव का परम भक्त था परंतु अपने अहंकार के कारण वह कभी
अपने ईष्ट को पूर्णतः पा न सका।
ग)‘हरि गुन लिखा न जाए’- कवि ने यह बात आपको कैसे समझाई
है ?
'हरि गुन लिखा न जाए’ - कवि ने यह बात बड़े ही सहजता से
समझाई है। कवि कहते हैं कि ईश्वर की महानता को शब्दों में
प्रकट करना असंभव है। उनकी महानता को लिखने के लिए
यदि सातो समुद्र के जल को स्याही बनाई जाए, संपूर्ण धरती
के वनों की लकड़ी को कलम बना ली जाए और इस पूरी
धरती को ही काग़ज बना ली जाए तो, भी उसकी महानता को
बताने के लिए वह कम होगी।
घ) उपर्युक्त पंक्तियाँ आपको क्या सिखाती हैं ?
उपर्युक्त पंक्तियाँ हमें सिखाती हैं कि ईश्वर की प्राप्ति केवल
प्रेम एवं भक्ति से ही संभव है। अहंकार मनुष्य को अपने
लक्ष्य तक नहीं पहुँचने देता है। ईश्वर की महानता विशाल है,
उसे हम किसी भी सीमा में बाँध नहीं सकते हैं।
प्रेम गली की यह विशेषता है कि यह बहुत ही संकरी होती है,
जिसमें दो एक साथ नहीं समा सकते। जिसे भी प्रेम के मार्ग पर
चलना होता है, उसे अहंकार का त्याग करना होता है क्योंकि
प्रेम सर्वस्व समर्पण की भावना को माँगता है और अहंकार
मनुष्य को सर्वस्व समर्पण करने नहीं देता है।
ख)‘मैं’ और ‘हरि’ के उदाहरण से कबीर आपको क्या समझाना
चाहते हैं ?
' मैं ’ और ' हरि ’ के उदाहरण से कबीरदास जी हमें यह
समझाना चाहते हैं कि अहंकार को बिना त्यागे ईश्वर की प्राप्ति
असंभव है। भक्त शक्ति से नहीं वरन् प्रेमपूर्ण भक्ति से ही
अपने ईष्ट का प्रिय बन सकता है। उदाहरण के लिए रावण
शिव का परम भक्त था परंतु अपने अहंकार के कारण वह कभी
अपने ईष्ट को पूर्णतः पा न सका।
ग)‘हरि गुन लिखा न जाए’- कवि ने यह बात आपको कैसे समझाई
है ?
'हरि गुन लिखा न जाए’ - कवि ने यह बात बड़े ही सहजता से
समझाई है। कवि कहते हैं कि ईश्वर की महानता को शब्दों में
प्रकट करना असंभव है। उनकी महानता को लिखने के लिए
यदि सातो समुद्र के जल को स्याही बनाई जाए, संपूर्ण धरती
के वनों की लकड़ी को कलम बना ली जाए और इस पूरी
धरती को ही काग़ज बना ली जाए तो, भी उसकी महानता को
बताने के लिए वह कम होगी।
घ) उपर्युक्त पंक्तियाँ आपको क्या सिखाती हैं ?
उपर्युक्त पंक्तियाँ हमें सिखाती हैं कि ईश्वर की प्राप्ति केवल
प्रेम एवं भक्ति से ही संभव है। अहंकार मनुष्य को अपने
लक्ष्य तक नहीं पहुँचने देता है। ईश्वर की महानता विशाल है,
उसे हम किसी भी सीमा में बाँध नहीं सकते हैं।
२२. “काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाए।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाए॥
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाए संसार॥”
क) मुल्ला के विषय में कबीर का क्या कहना है ?
मुल्ला के विषय में कबीर का कहना है कि, मुल्ला अर्थात्
मौलवी जी ईंट पत्थरों से बने मस्जिद में सबसे ऊँची जगह
लगाई गई माइक पर ज़ोर-ज़ोर से अज़ान उसी प्रकार देते
हैं, जिस प्रकार मुर्गा सुबह-सुबह बाँग देता है।
ख) क्या पहले दोहे में आपको व्यंग्य की झलक मिलती है ?
समझाकर लिखें।
कबीरदास जी ने पहले दोहे में इस्लाम धर्म के अज़ान पर
व्यंग्य किया है। उनके अनुसार क्या इस्लाम धर्म को मानने
वालों का खुदा बहरा है, जो उस तक अपनी बात पहुँचाने के
लिए मौलवी जी को माइक पर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना पड़ता
है।
ग) पत्थर, पहाड़ और चक्की में किसे महान माना गया है और
क्यों ?
पत्थर, पहाड़ और चक्की में चक्की को महान माना गया है
क्योंकि पत्थर और पहाड़ के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़े रहने
से हमारी इच्छाएँ पूर्ण नहीं होती हैं, उसके लिए हमें कर्म
करना पड़ता है। कबीर जी के अनुसार इन सभी से चक्की
अधिक महान है क्योंकि उसे चलाकर गरीब कम से कम
अपनी भूख को शांत कर सकता है।
से हमारी इच्छाएँ पूर्ण नहीं होती हैं, उसके लिए हमें कर्म
करना पड़ता है। कबीर जी के अनुसार इन सभी से चक्की
अधिक महान है क्योंकि उसे चलाकर गरीब कम से कम
अपनी भूख को शांत कर सकता है।
घ) उपर्युक्त दोहों से कबीर के बारे में आप क्या जान पाते हैं ?
उपर्युक्त दोहों से कबीरदास जी के बारे में हम यह जान पाते हैं कि, मुख्यतः वे समाज सुधारक थे , कवि का दायित्व भी उन्होंने
मात्र समाज को सुधारने के उद्देश्य से ही किया था। कबीरदास
जी कर्म पर अधिक बल देते थे। उन्होंने धार्मिक आडंबरों का
खंडन किया है। उन्होंने प्रेम द्वारा ईश्वर की प्राप्ति को सही मार्ग
बताया है।
सन् १८२५ की इस चित्रकारी में कबीर एक शिष्य के साथ दर्शित | |
जन्म: | विक्रमी संवत १४५५ (सन १३९८ ई ० ) |
---|---|
मृत्यु: | विक्रमी संवत १५५१ (सन १४९४ ई ० ) मगहर, उत्तर प्रदेश, भारत |
कार्यक्षेत्र: | कवि, भक्त, सूत कातकर कपड़ा बनाना |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
भाषा: | हिन्दी |
काल: | भक्ति काल |
विधा: | कविता |
विषय: | सामाजिक, आध्यात्मिक |
साहित्यिक आन्दोलन: | भक्ति आंदोलन |
प्रमुख कृति(याँ): | बीजक |
इनसे प्रभावित: | दादू, नानक, पीपा, हजारी प्रसाद द्विवेदी |
3. अपना-अपना भाग्य ' जैनेंद्र कुमार ’

उपनाम: | जैनेन्द्र कुमार |
---|---|
जन्म: | 2 जनवरी 1905 कौड़ियालगंज अलीगढ़ भारत |
मृत्यु: | 24 दिसम्बर 1988 नई दिल्ली |
कार्यक्षेत्र: | व्यापार, पत्रकारिता, लेखन |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
भाषा: | हिन्दी |
काल: | आधुनिक काल |
विधा: | गद्य |
विषय: | कहानी, उपन्यास, निबंध, संपादन व अनुवाद |
साहित्यिक आन्दोलन: | प्रगतिवादी |
इनसे प्रभावित: | साठोत्तर हिंदी उपन्यास |
१. वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के
प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं।
२.जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्य गति में सूक्ष्म संकेतों की
निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं।
के रूप में भी इनका स्थान मान्य है।
४. जैनेन्द्र ने हिन्दी को एक पारदर्शी भाषा और भंगिमा दी, एक
नया तेवर दिया, एक नया `सिंटेक्स' दिया।
५.क्रांतिकारिता तथा आतंकवादिता के तत्व भी जैनेंद्र के उपन्यासों
के महत्वपूर्ण आधार है।
६. 'फांसी' इनका पहला कहानी संग्रह था,जिसने इनको प्रसिद्ध
कहानीकार बना दिया। सन १९२९ में इनका पहला उपन्यास
'परख' प्रकाशित हुआ, जिस पर इन्हें बाद में साहित्य अकादमी
का पुरस्कार भी मिला।
७. इनकी कहानियों में कहानी-कला को नया आयाम मिला है,
जिसमें वर्णन और विवरण की अपेक्षा चिंतन और विश्लेषण
की प्रधानता है।
८. प्रमुख रचनाएँ :- फाँसी , जय संधि , वातायन , नीलम देश
की राजकन्या , एक रात , दो चिड़ियाँ , पाजेब इत्यादि।
९. 1971 में इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
शब्दार्थ :
निरुद्देश्य बिना किसी उद्देश्य के
सनक पागलपन
प्रकाश-वृत रोशनी का घेरा
कुढ़ना चिढ़ना
सूनी खाली
कोस लगभग तीन किलोमीटर की दूरी
असमंजस दुविधा
निठुराई कठोरता
बेहयाई बेशर्मी
वाक्य गठन करें
१. बेरोक - बेरोक जीवन अनुशासनहीनता को जन्म देती है।
२. मूक - कभी-कभी मूक रहकर आप बड़ी-बड़ी समस्या को हल
कर सकते हैं।
३. चम्पत - चोर पुलिस के आने से पहले ही चम्पत हो गया।
४.असमंजस - महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन असमंजस में थे कि
वे अपने प्रिय जनों से युद्ध कैसे करेंगे ?
५. चिथड़ों - चिथड़ों में लिपटे गरीबों को देखकर मुझे देश की आर्थिक
स्थिति के बारे में पता चलता है।
प्रश्नोत्तर :
1. वह हमें न देख पाया, वह जैसे कुछ भी न देख रहा था। न नीचे की
धरती , न ऊपर चारों ओर फैला हुआ कुहरा, न सामने का तालाब,
और न एकाकी दुनिया। वह बस अपने निकट वर्तमान को देख
रहा था।
(क) 'वह’ शाब्द किसके लिए प्रयोग किया गया है ? उसका परिचय
दीजिए।
(क) 'वह’ शब्द का प्रयोग बालक के लिए किया गया है।वह अपने
सिर के बड़े-बड़े बालों को खुजला रहा था। उसके पैर में जूते
नहीं थे। उसके सिर पर टोपी नहीं थीं। बदन पर मैली-सी फटी
हुई कमीज़ लटकाई हुई थी। सर्दी का मौसम था। वह बालक
नैनीताल से पंद्रह कोस दूर एक गाँव का रहनेवाला था। उसके
कई भाई-बहन थे। माँ-बाप इतने गरीब थे कि उन्हें भूखे पेट
ही सोना पड़ता था। बालक अपने साथी के साथ नैनीताल
भाग आया था। वहाँ उसे एक नौकरी मिली जिसमें सब काम
करना पड़ता था तथा बदले में एक रुपया, जूठा खाना तथा
सोने की जगह मिलती थी। परंतु नौकरी चली जाने से अब
वह नैनीताल की सड़क पर भटक रहा था।
(ख) वह 'हमें’ क्यों नहीं देख पाया ? 'हमें’ शब्द का प्रयोग किनके
लिए किया गया है ? वे वहाँ क्या कर रहे थे ?
(ख) वह बालक 'हमें’ इसलिए नहीं देख पाया क्योंकि वह अपनी
समस्या में खोया हुआ था। वह कुछ भी देख नहीं रहा था।
वह न ज़मीन को देख रहा था न कुहरे को। उसे न नैनीताल
का ताल दिख रहा था न ही एकाकी दुनिया। 'हमें’ शब्द का
प्रयोग लेखक और उनके मित्र के लिए किया गया है। वे दोनों
वहाँ घूमने आए थे। वे दोनों निरुउद्देश्य घूमने के बाद
सड़क के किनारे एक बैंच पर बैठे हुए थे। मित्र उठना नहीं
चाह रहे थे। उन्हें शायद वहाँ एकांत में बैठना अच्छा लग रहा
था। वे प्रकृति के सौंदर्य का अवलोकन देर तक करना
चाहते थे जबकि लेखक को बैठना अच्छा नहीं लग रहा था,
वे कुढ़ रहे थे।
(ग) वह अपने किस निकट के वर्तमान को देख रहा था और क्यों
? स्पष्ट कीजिए।
(ग) बालक की नौकरी छूट गई थी। वह पहले जिस दुकान में काम
करता था, रात को वहीं सो जाया करता था। अब पूरा दिन
प्रयत्न करने पर भी उसे दूसरी नौकरी नहीं मिली। वह दिन भर
का भूखा था। सर्दी बहुत थी। उसके पास तन ढँकने के लिए
एक चिथड़ी कमीज़ के अलावा और कुछ भी न था। शहर में वह
अकेला था, उसका साथी मर चुका था। वही उसका निकट
वर्तमान था जिसमे वह उलझा हुआ था।
(घ) मित्र ने बालक से क्या पूछा ? उससे बातचीत के दौरान मित्र
को किन तथ्यों का ज्ञान हुआ ?
(घ) मित्र ने बालक से उसके घूमने का कारण पूछा क्योंकि सारी
दुनिया सो गई थी और वह वहाँ अकेला घूम रहा था।
बालक के विषय मे मित्र को यह पता चला कि उसकी नौकरी
छूट गई है, वह गाँव से आया था और एक दुकान में काम
करता था, जहाँ उसे एक रुपया, जूठा खाना और सोने के लिए
जगह मिलती थी। उसका एक साथी भी उसके साथ आया था
जो कि साहब के मारने से मर गया था।
2. मोटर में सवार होते ही यह समाचार मिला। पिछली रात एक
पहाड़ी बालक सड़क के किनारे - पेड़ के नीचे ठिठुरकर मर
गया।
(क) किसे, कब और कौन-सा समाचार मिला ?
(क) लेखक को समाचार तब मिला जब वे अपना नैनीताल का
सफ़र खत्म कर लौट रहे थे, और समाचार यह था कि पिछली
रात एक पहाड़ी बालक सड़क के किनारे, पेड़ के नीचे
ठिठुरकर मर गया।
(ख) उन्हें कैसे ज्ञात हुआ कि वह बालक वही था जो उन्हें पहले दिन
मिला था ?
(ख) बालक वहीं मरा पड़ा था जहाँ लेखक और उनके मित्र से
उसकी मुलाकात हुई थी। मरने वाले की उम्र वही थी, और
उसके बदन पर वही काले चिथड़ों की कमीज़ मिली। इससे पता
चलता है कि मरने वाला वही पहाड़ी बालक था।
(ग) आदमी की दुनिया ने उस बालक को कौन-सा उपहार दिया था ?
इससे दुनिया वालों के बारे में क्या पता चलता है ?
(ग) आदमी की दुनिया ने उसके लिए मौत का उपहार छोड़ा था। इस
घटना से लोगों की हृदय शून्यता का पता चलता है। किसी ने भी
अगर उस बालक की तरफ़ मदद का हाथ बढ़ाया होता या उसे
कोई नौकरी दी होती तो उसका अंजाम वह न होता, जो हुआ।
दो रोटी, तन ढँकने के लिए कुछ कपड़े और सिर छुपाने की
एक छोटी सी जगह उसकी मौत रोक सकती थी।
(घ) प्रकृति ने दुनिया वालों की बेहयाई कैसे ढँकी ?
(घ) बालक की लाश लावारिस पड़ी थी, उसे कोई पूछने वाला नहीं
था। उसके मुँह, छाती, पैरों और मुट्ठियों पर बर्फ़ की चादर-सी
बिछ गई थी। प्रकृति ने उसके लिए सफ़ेद और ठंडे कफ़न का
प्रबंध कर दिया था। इस कफ़न ने मानो दुनिया की बेहयाई को
भी ढँका था, क्योंकि अगर दुनिया वालों की आँखों मे पानी होता
तो यह बालक यूँ बेमौत न मरता।
अपना-अपना भाग्य
4. नेताजी का चश्मा
विनय के पद
* भक्तिकाल की सगुण धारा के मुख्य प्रवर्त्तक माने जाते हैं।
* जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजपुर गाँव में सन् 1532 में
हुआ।
* इनके गुरु श्री नरहरिदास जी थे जिन्होंने इन्हें वेद, पुराण तथा अन्य
शास्त्रों का ज्ञान दिया था।
* इनकी भाषा ब्रज और अवधि दोनों ही हैं।
* ' रामचरित्मानस ’ इनका सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है।
* इनकी रचना में भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन, तथा भक्ति का
अदभुत समन्वय देखने को मिलता है।
* तुलसीदास जी को हिन्दी जगत का सूर्य कहा जाता है।
* प्रमुख रचनाएँ : दोहावली, गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका
जानकी मंगल, पार्वती मंगल, वैराग्य संदीपनी, बरवै रामायण,
हनुमान बाहुक आदि हैं।
शब्दार्थ :
उदार - बड़े दिल वाला
द्रवै - करुणा करते हैं
सरिस - समान
विराग - वैराग्य
जतन - प्रयत्न
सम्पत्ति - धन
अरप - अर्पण
सकुच - संकोच, हिचकिचाहट
कृपानिधि - दया के सागर
वैदेही - सीता
तजिए - छोड़ दीजिए
कंत - पति
बनितह्नि - स्त्रियों के द्वारा
सुहुद - संबंधी
सुसेव्य - सेवा करने योग्य
अंजन - काजल
सनेह - स्नेह के साथ
आभार ज्ञापन (परियोजना कार्य )
आभार ज्ञापन
कोई भी कार्य बिना लक्ष्य के सुव्यवस्थित रूप से पूर्ण नहीं
होता।
यदि विषय सुगठित, सुललित और उद्देश्यपूर्ण होगा तो वह
प्रेरणाप्रद सिद्ध
होगा। मैं .......(अपना नाम) कक्षा नवीं/दसवीं
का/की छात्र/छात्रा हूँ, और इस तथ्य
को ध्यान में रखते हुए इस
परियोजना के संकलन के लिए मैं विद्यालय की
प्रधानाचार्या
श्रीमती सीमा सप्रू व अपने विषय के/की अध्यापक/अध्यापिका
श्री/श्रीमती ......... (नाम) का/की अत्यंत आभारी हूँ, जिनकी
छत्रछाया और कुशल
दिशा-निर्देश को पाकर ही मैं इस परियोजना
को सफल रूप दे पाया हूँ।
वास्तव में इनका सहयोग व मार्गदर्शन मेरे लिए अत्यंत
उत्साहवर्धक था, जिससे मुझे पूरा सहयोग प्राप्त हुआ।
ईश्वर की असीम अनुकंपा, गुरुजनों का कुशल निर्देश,
सहपाठियों
का स्नेहपूर्ण सहयोग व माता-पिता के सहयोगात्मक आचरण
द्वारा ही मैं इस
परियोजना को पूर्ण करने में समर्थ हुआ हूँ।
- धन्यवाद
दो कलाकार “ मन्नू
भंडारी “
· अनेक कहानियाँ
, उपन्यास एवं नाटक लिखकर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया।
· लेखन का संस्कार उन्हें विरासत में मिला।
· उनका उपन्यास `आपका बंटी' (१९७१) हिन्दी
के सफलतम उपन्यासों में गिना जाता है।
·
नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच आम
आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उद्घाटित करना उनकी रचना का मुख्य विषय रहा।
·
इनकी भाषा संस्कॄतनिष्ठ हिन्दी है।
·
प्रमुख रचनाएँ
:- एक प्लैट सैलाब, मैं हार गई , तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है इत्यादि
हैं।
शब्दार्थ :
चौरासी लाख योनि – सभी प्रकार के जीव
प्रतीक – चिह्न
हाड़ तोड़ परिश्रम – कड़ी मेहनत
तूली – कूँची
शोहरत – प्रसिद्धि
सामर्थ्य – योग्यता
ढाँचा – आकार
लोहा मानना – प्रभुत्व स्वीकार करना
दारिद्रय – गरीबी
प्रदर्शनी – नुमाइश
१. “ अरे, यह क्या
? इसमें तो सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर, मकान ..... सब एक दूसरे पर चढ़ रहे हैं,
मानो सबकी खिचड़ी पकाकर रख दी हो। क्या घनचक्कर बनाया है ?”
क) प्रस्तुत
पंक्ति किसने, किससे कहे ? उपरोक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए ।
:- प्रस्तुत
पंक्ति अरुणा ने चित्रा से कहे । प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुणा ने अपनी सहेली चित्रा
से तब कहे जब वह सो रही थी और चित्रा उसे ज़बरदस्ती उठाकर अपनी चित्रकारी देखने के
लिय मजबूर कर रही थी जो उसने अभी – अभी बनाई थी।
ख) उक्त कथन
कहने वाली वक्ता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
:- अरुणा,
चित्रा की अच्छी सहेली थी। दोनों एक ही छात्रावास में साथ रहने वाली घनिष्ठ
सहेलियाँ थीं। एक साथ खाना-पीना, सोना उनकी मित्रता को निखारता था। अरुणा एक भावुक
लड़की थी। वह सदा समाज सेवा में व्यस्त रहती थी। गरीब बच्चों को पढ़ाकर कुछ कमाने
लायक बनाना, दीन-दुखियों,बीमारों की सेवा में रात-दिन व्यस्त रहना उसके जीवन का
उद्देश्य था। अपनी परोपकार की भावना के कारण ही छात्रावास में अरुणा आदर व
ईर्ष्या का पात्र थी। उसकी समाज सेवा के कारण उसकी प्राचार्या और वार्डन दोनों ने
ही अरुणा को छात्रावास के सारे नियमों से मुक्ति दे रखी थी। ग) ’ खिचड़ी
पकाकर ’ का क्या आशय है ? यहाँ इस मुहावरे का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया
है ?
:- ’ खिचड़ी
पकाकर ’ का अर्थ है कुछ भी स्पष्ट न होना। यहाँ इस मुहावरे का प्रयोग अरुणा ने
चित्रा द्वारा बनाए गए चित्र के लिए किया है। चित्रा की बनाई गई चित्रकारी में
कुछ भी स्पष्ट नही था। उसके चित्र में सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर, मकान सब एक
दूसरे पर चढ़े हुए थे।वास्तव में अरुणा ने चित्रा के बनाए आधुनिक चित्र की खिल्ली
उड़ाने के लिए ही उपर्युक्त मुहावरे का प्रयोग किया है।
घ) वक्ता ने श्रोता के चित्र की खिल्ली किस
प्रकार उड़ाई ? इसके पीछे वक्ता के क्या भाव हैं ?
:- वक्ता ने
श्रोता के चित्र की खिल्ली उड़ाते हुए सबसे पहले उसे पकड़कर घुमाते हुए बोला कि उसको
देखना किस तरफ़ से है क्योंकि हर तरफ़ से वह एक जैसा ही दिख रहा था। चित्रा को नारज़
करने के लिए उसने यह भी कहा कि कम से कम जिसका चित्र बनाया गया है , उसका नाम लिख
दिया जाए जिससे गलतफ़हमी न हो। आखिरकार वह चित्रा के चित्र की खिल्ली यह कहकर उड़ाती
है कि, वह किसी भी तरह नहीं समझ पा रही थी कि चौरासी लाख योनियों में से चित्रा ने
किस जीव की तस्वीर बनाई थी।
२. “ मौसी , हमें
ऐसी तस्वीर नहीं, अच्छी-अच्छी तस्वीरें दिखाओ, राजा-रानी की, परियों की। “ उस तस्वीर
को और अधिक देर तक देखना बच्चों के लिए असह्य हो उठा था।
क)’ मौसी ’ संबोधन किसके लिए कौन कर रहा है ?
:- ‘ मौसी ’ संबोधन चित्रा के लिए अरुणा के दोनों बच्चे कर रहे‘ हैं। चित्रा उन्हें अपनी प्रदर्शनी में लगी तस्वीरें घूम-घूम कर दिखा रही थीं। बच्चों को यथार्थवादी वे तस्वीरें अच्छी नहीं लग रही थीं।
ख) ऐसी तस्वीरे नहीं – से किस तस्वीरों की ओर
संकेत किया जा रहा है ?
:- ऐसी तस्वीरों से बच्चों का संकेत प्रदर्शनी में लगीं उन तस्वीरों से हैं जो समाज की कड़वी सच्चाई को दर्शाता है जैसे गरीबी। देश के आधी से अधिक जनता आज भी फुटपाथ पर सोती है, कुपोषण और भूख के कारण उन्हीं फुटपाथों पर उनकी मृत्यु हो जाती है। इन्ही भयानक दृश्यों को वहाँ प्रदर्शनी में लगाया गया था।
ग) उस तस्वीर को और अधिक देर तक देखना बच्चों के लिए क्यों असह्य हो उठा था ?
:- उस ’ अनाथ ’ शीर्षक चित्र को देखना उन बच्चों के लिए असह्य हो उठा था क्योंकि उस चित्र में चित्रित दोनों बच्चे जो अपनी मरी माँ की देह के पास बैठे रो रहे थे वास्तव में यही दो बच्चे थे जिन्हें अरुणा ने गोद ले लिया था। वह चित्र उनकी पीड़ा को बड़ा रहा था।उन्हे अपनी मरी माँ की याद दिला रहा था।
:- ऐसी तस्वीरों से बच्चों का संकेत प्रदर्शनी में लगीं उन तस्वीरों से हैं जो समाज की कड़वी सच्चाई को दर्शाता है जैसे गरीबी। देश के आधी से अधिक जनता आज भी फुटपाथ पर सोती है, कुपोषण और भूख के कारण उन्हीं फुटपाथों पर उनकी मृत्यु हो जाती है। इन्ही भयानक दृश्यों को वहाँ प्रदर्शनी में लगाया गया था।
ग) उस तस्वीर को और अधिक देर तक देखना बच्चों के लिए क्यों असह्य हो उठा था ?
:- उस ’ अनाथ ’ शीर्षक चित्र को देखना उन बच्चों के लिए असह्य हो उठा था क्योंकि उस चित्र में चित्रित दोनों बच्चे जो अपनी मरी माँ की देह के पास बैठे रो रहे थे वास्तव में यही दो बच्चे थे जिन्हें अरुणा ने गोद ले लिया था। वह चित्र उनकी पीड़ा को बड़ा रहा था।उन्हे अपनी मरी माँ की याद दिला रहा था।
घ) कहानी का उद्देश्य
को लिखते हुए शीर्षक की सार्थकता को
स्पष्ट करें।
:- कहानी का उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि , सच्चा कलाकार वह होता है जो अपनी कला से समाज का कल्याण करता है।प्रस्तुत कहानी में भी चित्रा ने अपनी कला का प्रयोग केवल अपने विकास के लिए किया था, उसे समाज या देश के विकास से कोई सरोकार न था। अतः वह किसी भी दृष्टि से एक सच्ची कलाकार न थी। इसके विपरीत अरुणा में लोगों को अपना बनाने की कला थी और अपनी इस कला से वह समाज की मदद करती थी। बाढ़ पीड़ितों की सेवा करना, गरीब बच्चों को पढ़ाना, अनाथ बच्चों को अपनाना, ये सभी गुण अरुणा में थे जो समाज का कल्याण करती थीं।
:- कहानी का उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि , सच्चा कलाकार वह होता है जो अपनी कला से समाज का कल्याण करता है।प्रस्तुत कहानी में भी चित्रा ने अपनी कला का प्रयोग केवल अपने विकास के लिए किया था, उसे समाज या देश के विकास से कोई सरोकार न था। अतः वह किसी भी दृष्टि से एक सच्ची कलाकार न थी। इसके विपरीत अरुणा में लोगों को अपना बनाने की कला थी और अपनी इस कला से वह समाज की मदद करती थी। बाढ़ पीड़ितों की सेवा करना, गरीब बच्चों को पढ़ाना, अनाथ बच्चों को अपनाना, ये सभी गुण अरुणा में थे जो समाज का कल्याण करती थीं।
निम्नलिखित
शब्दों का प्रयोग वाक्यों में करें...
शोहरत - ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
घनचक्कर -
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इकलौती -
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
मूसलधार
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
असह्य -
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
भिक्षुक
सूर्यकांत
त्रिपाठी ’ निराला
शब्दार्थ :
टूक – टुकड़े
लकुटिया – लाठी
दया-दृष्टि – कृपा-दृष्टि
दाता – देने वाला
१. १. साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए, और दाहिना
दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए। भूख से सूख ओंठ जब जाते,
दाता-भाग्य,
विधाता से क्या पाते ? घूँट आँसुओं के पीकर रह
जाते।
i. बच्चे पेट मलते हुए क्यों चलते हैं ?
ii. दया-दृष्टि का क्या अर्थ है ? किसकी दया-दृष्टि पाने
के लिए,
कौन, क्या कर रहे हैं ?
iii. पाँचवी पंक्ति का आशय स्पष्ट
कीजिए।
iv. पद्यांश का भाव अपने शब्दों में लिखें।
२. चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट
लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए। ठहरो, अहो मेरे हृदय
में
है अमृत, मैं सींच दूँगा। अभिमन्यु-जैसे हो सकोगे तुम, तुम्हारे
दुख मैं अपने
हृदय में खींच लूँगा।
i. सड़क पर कौन, क्या कर रहे थे ?
ii. जूठी पत्तलों पर बच्चों के साथ कौन
झपट पड़ा है ? इससे क्या
स्पष्ट हो रहा है ?
iii. कवि के हृदय में क्या है ? उससे वह
क्या करना चाहता है ?
समझाकर लिखें।
iv. कवि बच्चों को अभिमन्यु जैसा क्यों
बनाना चाहता है ?
its very useful
ReplyDeleteबहुत ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारी
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